03. प्यारे अव्यक्त बापदादा के महावाक्य हम बच्चों प्रतिः-

"...कोई भी बात में

अगर एक बार समय पर,

 बिना कोई संकल्प के

आज्ञा समझ कर जो सहयोगी बन जाते हैं

ऐसे समय के सहयोगियों को बाप-दादा भी अन्त तक सहयोग देने के लिए बाँधा हुआ है।

एक बार का सहयोग देने का अन्त तक सहयोग लेने का अधिकारी बनाता है।

एक का सौ गुना मिलने से मेहनत कम,प्राप्ति ज्यादा होती है।

चाहे मन सेचाहे तन से अथवा धन से।

लेकिन समय पर सहयोग दियातो

बाप-दादा अन्त तक सहयोग देने के लिये बांधा हुआ है।

जिसको दूसरे शब्दों में भक्त लोग अन्ध-श्रद्धा कहते हैं।

ऐसा अगर कोई एक बार भी जीवन में बाप-दादा के कार्य में सहयोग दिया है,

 तो अन्त तक बाप-दादा सहयोगी रहेगा।

यह भी एक हिसाब-किताब है। "

 

Ref:- Avyakt BaapDada 20.05.1972

02. प्यारे अव्यक्त बापदादा के महावाक्य हम बच्चों प्रतिः-

"...सारे कल्प की तकदीर इस घडी बनानी है।

ऐसे ध्यान देकर चलना है।

सारे कल्प की तकदीर बनने का समय अब है।

इस समय को अमूल्य समझ कर प्रयोग करो तब सम्पूर्ण बनेंगे।

एक सेकंड में पद्मों की कमाई करनी है।

एक सेकंड गँवाया गोया पद्मों की कमाई गंवायी,

अटेंशन इतना रखेंगे तो विजयी बनेंगे।

एक सेकंड भी व्यर्थ नहीं गँवाना है।

संगम का एक सेकंड भी बहुत बड़ा है।

एक सेकंड में ही क्या से क्या बन सकते हो।

इतना हिसाब रखना है। ..."

 

Ref:- Avyakt BaapDada 25.01.1970

01. प्यारे अव्यक्त बापदादा के महावाक्य हम बच्चों प्रतिः-

"...ज़रा भी आहुति की कमी रह गयी तो सम्पूर्ण सफ़लता नहीं होगी।

जितना और इतना का हिसाब है।

हिसाब करने में धर्मराज भी है।

उनसे कोई भी हिसाब रह नहीं सकता।

इसलिए जो भी कुछ आहुति में देना है वह सम्पूर्ण देना है और फिर सम्पूर्ण लेना है।

देने में सम्पूर्णता नहीं तो लेने में भी नहीं होगी।

जितना देंगे उतना ही लेंगे।

जब मालूम पड़ गया कि...

सफलता किसमें है

फिर भी सफल न करेंगे तो क्या होगा?..."

 

Ref:- Avyakt BaapDada 25.01.1970